क्या आपने प्रेमचंद की कहानियां पढ़ी हैं? यदि नहीं भी पढ़ी हों, तो आप प्रेमचंद के नाम से तो वाकिफ होंगे ही। प्रेमचंद की रचनाएँ मूलतः ग्राम-प्रधान होती थीं। वे गाँव में रहने वाले भोले-भाले लोगों की रोज़मर्रा की घटनाओं पर, या उनके जीवन से प्रेरित होती थीं। प्रेमचंद, अमृता प्रीतम जैसे लिखकों को हमने अपने दिल में सजा के रखा है।
पर हाल के दिनों में कुछ ऐसी घटना हुए जिसने मुझे इन कहानियों की खूबसूरती तथा सरलता के आलावा कुछ और भी सोचने पर मजबूर कर दिया। दरअसल हुआ यूँ की मेरी सास पिछले एक साल से पढ़ने की बहुत शौक़ीन हो गईं हैं। मैं उनको हर दो महीने में एक किताब भेज देती हूँ, जैसे की रामायण का सरल रूपांतरण , देवदत्त पटनायक की सीता, इत्यादि। अब हुआ यूँ की मैंने उन्हें बीते दिन प्रेमचंद की कहानियां नामक किताब भेजी। किन्तु बहुत दिन हो जाने के बाद भी जब उन्होंने इस किताब का ज़िक्र भी नहीं किया तो मैंने यूँ ही उनसे पूछ लिया, की आपने किताब पर कोई टिप्पड़ी नहीं दी। तो उनका सीधा जवाब आया “पसंद नहीं आई मुझे
वो ही दुःख दर्द लिखा है जो हमने बहुत सालों तक अपने गाँव में जिया है। ये सब पढ़ने की इच्छा नहीं है। इससे अच्छा तो आध्यात्मिक कथाएं हैं या तेनाली रामा के किस्से जिनका हालाँकि पहले से ज्ञान है, पर फिर भी दोबारा पढ़ी जा सकती हैं”। मैं एक पल को स्तब्ध रह गयी। मुझे पहला व्यक्ति मिला था जो की प्रेमचंद को नकार रहा था और वो भी कारण के साथ।
तब मुझे एहसास हुआ की फिल्मों में, कहानियों में, देखने और पढ़ने में तो हमें ‘पूस की रात’ बहुत मार्मिक और सराहनीय लगती है, किन्तु हल्कू की कहानी को अगर हल्कू को ही पढ़ाया जाता तो शायद वो उन पन्नों के चीथड़े चीथड़े कर देता।
ऐसी ही एक घटना मेरे साथ ऑस्ट्रेलिया में हुई जहां एक स्थानीय महिला ने मुझे बोला “भारत में एक मोटर बाइक पर पांच लोगों का पूरा परिवार जाता हुआ देख बड़ा रोमांचक लगता है”। तब में भी उनको बस यही बोल पाई की पर्यटकों को ये भले ही रोमांचक लगता हो पर हम मध्यम वर्गीय लोग जो ऐसे ही हल्द्वानी से नैनीताल कई साल गए हैं, उनके लिए ये एक रोमांच से ज्यादा एक मजबूर जीवन की व्यथा थी।
Unbelievable aali…dil ko chu gyii baat… 😊😊
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haha Sonam. Dhanyawaad
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Sahi Kaha apne, jaisa chashma, waisi hi dikhegi duniya!
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