सांझ जब ढलने लगी,
सिरहाने पर रात ने दस्तक दी,
आसमान के नीचे, तारों की चादर ओढ़े,
मैं पाँव पसारे बैठी हूँ।
कल पर विचार,और कल की चिंता,
रात क घनेरे साये में समेटती हूँ।
एकाएक मेरा ध्यान कुछ भंग हुआ,
आसमान से एक टूटता तारा धरती पर आ गिरा।
कहते हैं टूटते तारे से जो मांगो सच होता है,
इसलिए आज रात के अँधेरे में मेरे सपनों का बाजार सजेगा।
जो मैंने टूटता तारा देखा,
मन के रोशनदान खुलने लगे,
कैद ख्वाहिशों के परिंदे,
आकाश की बुलंदियां छूने लगे।
ये माँगूं या वो,
मन कुछ ऐसा चंचल हो गया,
की ऐसा लगने लगा,
जैसे सारा संसार आज इस तारे के आगोश में वशीभूत हो उठा।
यकायक टूटते तारे के भाग्य पर मैंने गौर किया,
तारे की मौत में सपने सजा कर,
कहीं अनजाने में मैंने कोई अक्षम्य पाप तो नहीं किया?
लुप्त होती रोशनी से ही, तारा मुझसे बोल पड़ा,
मैं तो जन्मा कब से था, पर आज तूने मुझ पर गौर किया?
करोड़ों हैं तारे अब भी सजे आसमान में,
किन्तु कुछ क्षण के लिए ही सही, पर तेरे भ्रमांड का केंद्र आज मैं बना।
क्यों रोती है मेरी मृत्यु पर?
मैं तो मृत होने के लिए ही जिया था।
जो जीवन भर टिमटिमा के ना कर पाया,
आज अंतिम पल की रोशनी से कर दिखाया।
मेरी जाती रूह पर अफ़सोस तू यूँ ना जता,
तारे तो टूटने के लिए ही जन्में हैं,
तू यूँ मायूस हो कर, महज़ एक तारा ना बन जा।
मोहतरमा, आप तो वैज्ञानिक हैं।
धरती की ओर गिरते उल्कापिंड को तारा समझ बैठी आप।
LikeLike
Thank you for the observation. The word has been used as a metaphor for self-talk.
LikeLike
गजब की अतिश्योक्ति है आपकी भावनाओं में, अद्धभुत।
LikeLike