हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे

अगर आप उत्तर भारत में रहते हैं तो इस समय आपके पास बातें करने का सबसे प्रचलित मुद्दा होगा प्रदूषण। गर्मियों का समय होता तो मुद्दा होता भीषण जला देने वाली गर्मी। बरसात का मौसम होता तो मुद्दा होता बाढ़ ग्रसित शहर। चुनाव का समय होता तो मुद्दा होता राम मंदिर, पकिस्तान, पप्पू, नेहरू आदि। सौ बातों की एक बात, हमें बातें करना बहुत पसंद है और हमारे पास बातें करने के मुद्दे भी बहुत हैं। ये बातें हम अपने बंद कमरों में खाना पीना करके, टीवी देखते हुए, दोस्तों से मज़ाक मस्ती करते हुए या कान में गाने लगाकर सोशल मिडिया के ज़रिये करते हैं। समस्या अलग-अलग होती हैं। कभी गरीब की करनी से अमीर पिसता है, कभी अमीर की करनी से गरीब और कभी प्रकृति की करनी से दोनों।

पर अमीर गरीब को छोड़ दें तो कोई और भी हैं जो जबरदस्ती हर बार मार खाते हैं। उनका समस्या को आग देने में कोई हस्तक्षेप नहीं होता। वो तो मनुष्य जाति से कई प्रतिशत कम बुद्धि के शिकार हैं जिन्हें ना कल पर दुःख है, और ना कल की चिंता। बस आज और अभी में जीते हैं। इन बेचारों से हमने वो भी छीन लिया। कभी इनके पेट से २०-३० किलो प्लास्टिक निकलता है, तो कभी ये गर्मी में पानी के लिए नालियों में मुँह डालके रखते हैं। और आज जब हम कमरे में बंद होकर प्रदूषण पर चर्चा कर रहे हैं, या मुँह पर मास्क लगाकर घूम रहे हैं, तब ये बेचारे अनजान जीव हमारे नए फैशन से चकित टुकटुकी लगाए हमको निहार रहे हैं। हाँ ये कोई और नहीं बल्कि मनुष्य जाति के आलावा पाई जाने वाली बाकी सारी जातियों की कहानी है। न जाने इनके क्या पाप हैं। वो तो अच्छा है इनको ज्यादा बुद्धि विवेक और भाषा का ज्ञान है नहीं की ये खुद पर हो रहे अत्याचारों की गाथा हमें समझा पाएं, वरना ये चाहे हमारे कर्मों का बदला हमसे लेते ना लेते, अपनी आपबीती से हमारे लिए एक और बात करने का मुद्दा ज़रूर दे देते।

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