बोझ क्या है तुम क्या जानो

बीते दिनों आइआइटी कैम्पस में एक बहुत अफसोसजनक घटना हुई। पढ़ाई के बोझ के तहत एक और जान चली गयी। वो पल भर का बोझ जीवन के अनंत सुख और अवसरों से ज्यादा लगी उस जान को। दुर्भाग्य की इससे साफ़ परिभाषा क्या होगी की हम यह समझ सकते हैं की एक मृत व्यक्ति को जीवित करना असंभव है चाहे वो उसके लायक भी हो, पर हम यह नहीं समझ पाते की एक जीवित व्यक्ति को खुद मौत के दरवाजे पर छोड़ देना भी सृष्टि के विरुद्ध है। फिर चाहे वो व्यक्ति हम खुद क्यों ना हों।

यहाँ पांच साल बिताने के बाद मैंने ये तो देख लिया है की चाहे यह जगह बाहर से सबको आकर्षित करती है, पर यहां रहने वाले ज्यादातर लोगों के शिकायतों के रजिस्टर गणेश जी के लिखने की गति के समान ही भरते हैं। जब हम दुखी हों तो हमें बताया जाता है की अपने से नीचे व्यक्ति की स्थिति देखो। खैर आज दिन में मैं इस खोज में निकली तो नहीं थी, पर एक वाक्या ऐसा घट गया जिसने मुझे इन जीवन के सामने घुटने टेक देने वाले लोगों पर और अफ़सोस मानाने का कारण दे दिया।

हुआ यूं की हमारे आवास के सामने एक नयी इमारत का निर्माण चल रहा है। आज बड़े दिनों बाद अच्छी धूप निकली थी इसलिए लेबर नहा रहे थे। एक नौजवान ने छक्ककर पाइप से आते पानी की तेज़ धारा में खुद को रगड़ रगड़ कर साफ़ किया। समाज ने आखिर उसे आज़ादी दे रखी है इसलिए वह तौलिया लपेटे, अर्धनग्न अवस्था में बेख़ौफ़ और बेझिझक नहा पाया। थोड़ी देर में एक महिला कर्मचारी भी नहाने आई। खुले आसमान के नीचे वो आखिर कैसे नहा सकती थी। क्यूंकि औरत का एक गहना तो पर्दा ही है ना! इसलिए दिन भर मिटटी में काम करने के बाद भी वह साड़ी पहने हुई ही खुद पर पानी डाल अपने को साफ़ कर पाई। उस औरत की बेबसी पर मुझे बहुत अफ़सोस हुआ। जहाँ सामाजिक कैद ने उसे अपने शरीर का मैल तक ना निकालने दिया, उसके आर्थिक संकट उसको एक पर्दा भी ना दे सके।

पर अफ़सोस मुझे था, उस महिला को नहीं। क्यूंकि उसके लिए जीवन में पर्दा ना होना सबसे छोटी समस्या होगी। वह एक ताकतवर महिला है। नहाने के बाद उसने अपने पूरे परिवार के कपड़े धोये, खाना भी बनाया होगा, फिर सिर पर ईंट लादे वह वापस इमारत बनाने में लग गई होगी। इसी हिम्मती महिला के श्रम से बानी इमारत में कुछ साल बाद हम जैसे लोग रहेंगे जिनकी शिकायतों की किताब का भार उन ईंट के भार से कई गुना ज्यादा होगा। और शायद वो औरत तब भी, अब कहीं और, किसी और आसमान के नीचे फिर किसी रविवार को साड़ी पहने ही धूप में नहा रही होगी।

4 Comments

  1. A minute ago I was thinking on the same…that this city has huge buildings and highly frustrated ppl living in these buildings who can jump easily anytime.
    Ur blog is too deep Aalu…good job

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  2. बहुत सी संवेदनशील बातें लिख दी जो समाज मे हैं लेकिन हम उन्है अनदेखा कर देते हैं

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