विक्की की वकालत

सिनेमा का हम पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कभी कभी तो इतना गहरा कि हम अपने भविष्य के बड़े बड़े फैसले भी सिनेमा से प्रभावित होकर कर लेते हैं। देर सवेर यह एहसास जरूर हो जाता है कि फिल्म के किरदार पर्दे पर ही सही लगते हैं। असल जिंदगी में तो कहानी और रोमांच कहीं और ज्यादा गज़ब होते हैं। ऐसी ही एक कहानी है विक्की की।

बात उस समय की है जब विक्की स्कूल में पढ़ती थी। उन दिनों दामिनी नाम की एक फ़िल्म टीवी पर बहुत आया करती थी। फ़िल्म का एक डायलॉग बेहद प्रचलित हुआ जहां सनी देओल जज साहब को दुत्कारते हुए कहता है:

तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख मिलती रही है जज साहब पर इंसाफ नहीं मिला।

दामिनी फिल्म का एक दृश्य

डायलॉग इतना भारी भरकम था कि उसके बोझ तले जज साहब तारीख ना दे कर सुनवाई आगे बढ़ाते हैं। ये वाक्या विक्की के मासूम दिल में छाप छोड़ गया और उसने मन में गांठ बाँध ली कि एक तो बड़े हो कर वकील बनना है और दूसरा की ऐसा वकील जो जैसे तैसे पहली सुनवाई में ही केस पूरा कर दे।

साल बीतते गए और सही समय आने पर विक्की ने वकालत की पढ़ाई में दाखिला ले लिया। कॉलेज के पहले दिन सीनियर्स ने नए छात्रों से उनके पसंदीदा वकील के बारे में पूछा। जहाँ किसी ने राम जेठमलानी का नाम लिया तो किसी ने हरीश साल्वे का, विक्की के मन में एक ही जवाब गूंज रहा था “दामिनी का सनी देओल”। पर ये जानते हुए की इस जवाब से बस मखौल ही उड़ सकता है, उसने जेठमलानी जी के नाम की माला जप लेना ही उचित समझा।

अब पढ़ाई शुरू होने लगी। वकालत की पढ़ाई टीवी की फिल्मों जैसी बिल्कुल नहीं लग रही थी और ना ही यहां डायलॉगबाजी पर कोई एहमियत दी जा रही थी। बाकायदा तमाम तरीके की किताबें पढ़नी पढ़ती थी। संविधान और उसके संशोधन, नाना प्रकार की धाराएं इत्यादि, पढ़ने को जैसे पूरा संसार था। ऐसे में विक्की की काफी कमर टूट गई थी पर संकल्प दृण था। और क्योंकि संकल्प से ही सृष्टि बनती है, पांच साल में विक्की वकील बन गई।

उसने शहर के एक नामी वकील के आफिस में बतौर इंटर्न भाग ले लिया। एक दिन विक्की के बॉस ने विक्की को उसका पहला केस दिया। इनका क्लाइंट जिसका नाम राजेश था,छोटी मोटी चोरी करते हुए पकड़ा गया था और विक्की को उसको बेल दिलवानी थी। पहला केस पाकर विक्की फूली नहीं समा रही थी और सीधा कोर्ट की और निकल पड़ी।

सुनवाई शुरू होने पर विक्की ने अपना पक्ष रखा और बेल लेने की प्रक्रिया आरम्भ करी। किन्तु जज ने बोला की बेल देने से पहले राजेश की जान पहचान का कोई व्यक्ति उसके साफ चरित्र की गवाही देने के लिए कोर्ट में आए। क्योंकि विक्की चाहती थी कि केस आज ही आज में समाप्त हो जाये वो जज की अनुमति ले कर बाहर गई और कोर्ट के बाहर किसी ऐसे इंसान को ढूंढने लगी जो थोड़े पैसों के लिए, कोर्ट में गवाही दे सके। जल्द ही उसको एक आदमी मिल गया जो ₹2000 में गवाही देने के लिए तैयार हो गया और दोनों कोर्ट में आ गए।

जज: क्या तुम मुजरिम राकेश को जानते हो?

गवाह: हैं??क्या कहा??

जज (चिल्लाते हुए) : राजेश को जानते हो?

गवाह: क्या कहा??

थोड़ी देर ऐसा ही सब चलता रहा। विक्की को समझ आ गया की ये आदमी भी सिनेमा से प्रभावित है और ना होते हुए भी केस को असली बनाने के लिए बेहरा होने का नाटक करने लगा है। कुछ देर बाद गवाह ने कबूल कर ही लिया की वो राजेश को जानता है और उसके साफ किरदार की जिम्मेदारी भी लेता है। सब सुनने के बाद जज ने अपना फैसला सुनाया:

जज: ऐसा है कि राजेश के केस पर फिर गौर करेंगे, पहले ये महानुभाव गवाह पर टिप्पणी कर लेनी चाहिए। एक तो ये आदमी कोर्ट में बहरेपन का नाटक कर रहा है और दूसरा इसने राजेश को जानने की झूठी गवाही भी दी है।इसलिए राजेश के साथ साथ इस आदमी को भी 14 दिन की जेल सुनाई जाती है।

ऐसा सुनना ही था कि वो आदमी विक्की के सामने गिड़गिड़ाने लगा की ये मेरे साथ क्या कर दिया मैडम। अब मैं क्या करूँ? विक्की ने उसे तपाक से जवाब दिया कि “सरेंडर कर दे, मैं तेरी भी बेल करवा दूंगी”। पहली ही सुनवाई में विक्की को अक्ल आ गई कि सनी देओल जैसे हाथ होना तो अच्छा रहेगा पर सनी देओल जैसी वकालत सिनेमा तक ही चल सकती है।

सनी देओल का ढाई किलो का हाथ

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