उत्तराखंड की कथाओं में जानवरों की एक विशेष जगह है। ऐसी कितनी कहानियां धीरे-धीरे हमारे पर्वों की कब अभिन्न अंग बन गईं, ये किसी को पता भी नहीं चला। पर समय बीतते-बीतते हम में से कितने लोग इन कहानियों से दूर हो गए। कहानियां, कथाएं जीवन में एक सरलता प्रदान करती हैं। आज इसलिए मैं आपको एक पहाड़ी कथा सुनाऊँगी जो हमारे एक बहुत लोकप्रिय पर्व से जुड़ी है, जिसका नाम है घुघुतिया। ये पर्व मकर संक्रांति पर मनाया जाता है। इस दिन बच्चे अपने गले में आटे के बने खिलौने जैसे पकवानों से पिरोयी हुई माला डालते हैं, और कौए को आवाज़ दे कर बुलाते हैं। पहाड़ का कोई व्यक्ति शायद ही हो जिसने अपने बचपन में ऐसा ना किया हो । पर इसके पीछे छिपी रोचक कथा का पता ना जाने कितनो को होगा। तो शुरू करते हैं।
बहुत साल पहले कुमाउं में चन्द्र वंश का राज हुआ करता था। उस समय के राजा कल्याण चंद कई सालों से निस्संतान थे। संतान सुख का अभाव और वंश का उत्तराधिकारी ना होने का दुःख राजा को खाये जाता था। उधर उनका मंत्री इस बात से बहुत खुश था की राजा के मरने के उपरान्त सारा राज्य उसका हो जाएगा। बहुत साल गुजर जाने पर, राजा और उनकी रानी ने बाघनाथ मंदिर में एक बच्चे की मनोकामना करी, जिसके कुछ समय बाद राजा का एक बेटा हुआ। राजा ने नंन्हे राजकुमार का नाम रखा “निर्भय चंद” जिसे प्यार से उसकी माँ “घुघूती” बुलाती थी। घुघूती के गले में एक मोतियों की माला डाली थी जो घुघूती को बेहद प्रिय थी। घुघूती जब भी अपनी मनमानी करने की जिद्द करता तो उसकी माँ उसको यह कहकर डराती की माला कौओं को दे देगी और जोर से बोलती “काले कौआ काले घुघुती माला खाले”। रानी के ऐसा बोलने पर कौओं का पूरा जमावड़ा लग जाता और रानी उनको कुछ खिला दिया करती। धीरे धीरे ऐसा सब होते होते, घुघूती को कौओं से विशेष लगाव हो गया और कौओं का भी घुघूती के प्रति स्नेह बराबर था।
उधर राजा के मंत्री में राज्य हड़पने की लालसा अभी भी प्रबल थी और उसने घुघूती को मार देने की साजिश रची। साजिश के अनुसार वो एक सुबह घुघूती को जंगल में चुपचाप सैर कराने के लिए उठा ले गया। बीच जंगल में पहुँच कर मंत्री ने घुघूती को मूर्छित हाल में मरने के लिए छोड़ दिया और खुद महल आ गया। ये सारा दृश्य एक कौए ने देख लिया। महल में हाहाकार मच गया की घुघूती को कौन और कहाँ ले गया। कुछ पता ना लगने पर, कौए ने जंगल की ओर उड़ान भरी और बेहोश पड़े घुघूती के गले से मोतीयों की माला उतार कर महल में ले आया। घुघूती की माला देख और कौए की कांव-कांव सुन, राजा रानी जंगल की ओर दौड़े जहां एक पेड़ के नीचे उन्हें बेहोश पड़ा घुघूती मिल गया। होश आने पर घुघूती ने अपनी सारी आपबीती अपने मां- बाप को सुनाई, जिसके पश्चात राजा ने मंत्री को मृत्युदंड दे दिया।
घुघूती के वापस मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाये और कौओं को खिलाये। तबसे हर साल मकर संक्रांति के दिन पहाड़ी बच्चे गले में पकवानों की माला डाले जिन्हें “घुघुत” कहा जाता है, कौओं को बुलाते हैं और कहते हैं “काले कौआ काले घुघुती माला खाले“। जहां प्यासे कौए की कहानी हम सब जानते हैं, ये कहानी कौओं की सूझ बूझ को एक बार फिर प्रमाणित करती है।
Badhiya
LikeLiked by 1 person
Thank You 🙂
LikeLike
Nice story
LikeLike
Thanks for going through my blog 🙂
LikeLike
Wow…. thank you Aali…aaj pta chala gughutiya ki kahani …
LikeLike
धन्यवाद डॉक्टर साहब 😊
LikeLike