नैनीताल के मामू कभाड़ी

नैनीताल आप में से अधिकांश लोग आए होंगे, और जो नहीं भी आय हों वो इस शहर की मनमोहक खूबसूरती से इत्तिफाक रखते ही होंगे। पर नैनीताल बस खूबसूरत मौसम और वादियों का गढ़ नहीं है, यहां रहने वाले स्थानीय लोग भी अपने में अलग खूबसूरती और खासियत लिए बैठे हैं। ऐसे ही एक महान व्यक्ति हैं राशिद अहमद, जिन्हें पूरा नैनीताल “मामू कभाड़ी” के नाम से जानता है।

मामू कभाड़ी नाम ही अपने में इन महानुभाव का पूरा परिचय है। शहर में स्कूल कॉलेज के बच्चों से लेकर टीचर और प्रोफेसर, मामू कभाड़ी सब में विख्यात हैं। नाम से लगता है कि मामू जब बस कभाड़ ही बेचते-खरीदते हैं तो इसमें ऐसा क्या नया है। दरसल मामू ने अपनी छोटी सी दुकान में किताबों का सैलाब लगा रखा है जहां आपको सभी दूसरों द्वारा इस्तेमाल करी गई किताबें मिलेंगी। जब भी मामू रद्दी खरीदते हैं वे साफ सुथरी और अच्छी स्थिति में रखी किताबों को अलग रख लेते हैं। जिन किताबों की स्थिति थोड़ी खराब लगे उनको पन्ना पन्ना ठीक कर, जिल्द चड़ा कर अपनी दुकान में लगा देते हैं। इन किताबों को फिर लोग छपे दाम से आधे दाम में खरीद लेते हैं।

मामू ने अपनी दुकान में हर क्लास की किताबें, प्रतियोगिता वाली किताबें और उपन्यास इत्यादि अलग अलग श्रंखलाओं में सजाए हैं। खुद उच्च शिक्षा से विहीन होने के बावजूद भी मामू को हर कोर्स में अभी चलने वाली किताबों का पूरा ज्ञान रहता है। 32 साल से लोगों को अच्छी और सस्ती किताबें प्रदान करने की जो लगन मामू ने दिखाई है, वो बेहद सराहनीय है।

मामू कभाड़ी

छोटी सी इस दुकान में लगभग 10 हज़ार किताबों को क्रमवार लगाया गया है। इनमें एक कोना गरीब बच्चों को निशुल्क किताबें देने का भी है। 60 साल के मामू किताबों की जगत के चंदा मामा से कम नहीं। हम खुद बचपन में वहां से ना जाने कितनी किताबें लाते थे। स्कूल की तो छोड़िए, मामू की इस दुकान में ही मेरी दीदी ने अरुंधती रॉय की बुकर पुरस्कार से सम्मानित किताब, गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स (God of Small Things) भी खरीदी।

हल्द्वानी से नैनीताल में प्रवेश करते समय, पिछाड़ी बाजार में बस स्टेशन के करीब ही मामू का बुक स्टोर है। स्टोर पर कोई नाम या बैनर नहीं है और ना ही कोई पब्लिसिटी का दूसरा पैंतरा। मामू कभाड़ी खुद अपने में बस नाम ही काफी है। अगली बार नैनीताल आएं तो स्टेशन से 10-12 दुकानें छोड़कर, दुमंजिले में इस हरी और सफ़ेद खिड़की की तरफ ध्यान दीजिएगा। यदि खिड़की खुली हो तो मामू अंदर ही होंगे, किताबें छांटते हुए।

7 Comments

  1. Thanks Aali for introducing mamu kabadi to us…really an interesting personality…will try to visit his shop on my next visit to Nainital

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  2. This blog flashed the old memories of looking at the window if its open or nt n then getting any and every book at half price and smtimes even bargaining on same 😉
    N most important we were so fond of him that we nick named our adorable frnd Mamta Tewari as Mamu

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  3. Aali …. You have beautifully described mamu kabadi…….. Revived all the school time memories related to books purchase……. Even for the new session…. Mummy kehti thi “mamu k yaha dekh le pehle waha bi mil jaaegi kitaabe”……and at times we used to spend hours waiting for him to come and open the shop and the rush used to be massive.

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  4. Thank you Aali for bringing the memories back. His shop is just behind my house. My dad use to go there and get books for us. He is indeed a remarkable man. A real gem of Nainital.

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