मेरा घर मेरे ऑफिस से दूर है। इस कारण रोज़ शहर के तमाम इलाकों से गुजरती हूं। इस रास्ते में रोज कुछ नया दिखता है। सुबह मंदिरों में बज रही घंटियों से लेकर निशुल्क भोजन देने वाली एक दुकान, इस दुकान के सामने बैठे मजदूर, स्कूल को जाते साफ सुथरे बच्चे, मिठाई की दुकान में बुलबुले बनाता हुआ गरम गरम दूध, गायों को घास खिलाते कई लोग, और ना जाने क्या क्या। शहर नई नई ऊर्जा से युक्त रहता है तब। शाम तक आते आते, मंदिरों में आरती हो रही होती है, मजदूर और निशुल्क भोजन वाली दुकान दोनों ही नदारद होते हैं, बच्चे या तो अब दिखते नहीं, और दिखें तो साफ सुथरे बिलकुल भी नहीं, मिठाई तो सजी दिखती है पर उबलता हुआ दूध अब खुद मिठाई बन चुका होता है, गाय भी गौधोली बेला होने के बाद अपने अपने क्षेत्र में चली जाती हैं। बल्ब इत्यादि की रोशनी में शहर अब उजला लगता है, पर ताज़ा नहीं।
इन सब बदलती बातों और बातों से जुड़ी कहानियों के बीच बहुत कुछ पुराना और स्थिर रहता है। सड़कों पर गड्ढे, गंदगी, फर्राटे से गुजरती गाड़ियां, ये सब तो हैं ही जो शायद आदिकाल से अनंत तक स्थिर रहेंगी, पर आज जिसकी स्थिरता मैं आपके साथ साझा कर रही हूं वो मेरी एक आदत के कारण मुझे ध्यान रहती है। बचपन में मेरी मां, मुझे और मेरी दीदी को इमला लिखवाती थी। शब्दों के सही उच्चारण और मात्रा के सही ज्ञान की नदी में, मां ने हमें गोते लगवाना सिखाया है। इस कारण किसी भी नोटिस या बोर्ड इत्यादि पर गलत शब्द लिखने पर मेरा खासिया ध्यान जाता है, चाहे हिंदी हो या अंग्रेजी। ऐसे ही कुछ बोर्ड हैं जो मैं रोज देखती हूं, पर अफसोस की उनकी फोटो नहीं ले पाती कभी।
एक बोर्ड है जो मैं शायद कभी नहीं भूल पाऊंगी। एक रेस्तरां के बाहर बोर्ड जिस पर उनका पूरा मेनू लिखा है, आकर्षक ढंग से लगाया है। शाकाहारी रेस्तरां है, मेनू में वही सब कचौरी, पकौड़ी, छोले इत्यादि होता है। पर बोर्ड का नाम है Snakes menu। आप समझ गए होंगे की ये महानुभाव ने snacks लिखना चाहा था। पहले दिन जब देखा तो आखें खुली की खुली रह गईं। एक पल को मजाकिया विचार आया की जोधपुर में तरह तरह के सांप पाए जाते हैं, पर जहां यहां की जनता अधिकतम शाकाहारी है, कुछ लोग यहां सांप खाते हैं? आज भी दिखता है तो नज़र अटक जाती है। एक दिन जाना जरूर है वहां। क्या पता चाउमीन भी बेचते हों और उसी को snake समझ रहे हों।
इस महफ़िल में दिल ही
फिल्म “आपको पहले भी कहीं देखा है” का गीत
दिल में आपसे जानेमन
कुछ भी न कहा
कुछ कह भी गए
कुछ कहते कहते
रह भी गए
इस महफ़िल में दिल ही
दिल में आपसे जानेमन
कुछ भी न कहा
कुछ कह भी गए
लिखने वाले ने भी क्या खूब लिखा अल्फाज़ ना बचे तारीफ को….
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Thank you 🙂
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फिर तो यही फिर से चाय Sanke पकोड़ा बनता है आपकी तरफ़ से। 😄🤟🏼
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Bilkul. Chai ke saath snakes ka combination sahi lag raha hai 😀
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फिर तो फिर से चाय (snake) पकोड़ा होना चाइये। 🤟🏼😄
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Jaroor jaroor 😁
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बहुत सुंदर लिखती हो आली। मैं तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक ( fan ) हूं।
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका
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