सड़कों पर धूल का अंबार लगा है। कभी लगता है, धरती पर नहीं, बल्कि सीधे इंद्रलोक में चल रहे हों, जहां फर्श से सफेद धुआं आता रहता है। गढ्ढों पर हिचकोले खाते लोग भी अप्सरा की तरह डोल रहे हैं। गाड़ियों का शोर भी वाद्य यंत्रों को चुनौती दे रहा है। पर खैर इससे पहले की इंद्र अपना वज्र हम पर चलाएं, ये याद कर लेते हैं की हम धरती पर ही हैं। दूषित और धूल मग्न हवा में सांस लेते हुए धरती के प्राणी।
इसी दूषित हवा को मद्देनजर रखते हुए एक नए शब्द की शब्दकोश में स्थान बनाने की दलील मैंने इस लेख से सामने रखने की कोशिश करी है। ये शब्द है “हवाखाना” । इस हवाखना रूपी दुकान में आपको साफ हवा मिलेगी। घंटों के हिसाब से किराया लगेगा, और सीधा पहाड़ों की साफ, ठंडी, मनमोहक हवा आपको मिलेगी। मान के चलिए की ज्यों ही ये हवाखाना खुलेगा, त्यों ही सबसे पहले दवाखाना के दिल में आग लगेगी।
ऐसा ही समय है अब, घर सबके स्वर्ग जैसे साफ, सुंदर, और आकर्षक, पर बाहर निकलते ही सड़कों पर इंद्रलोक सा एहसास, जहां मेनका और उर्वशी के तरह हम सब डोल तो रहे हैं, पर ना जाने क्यों सांस फ़ूल जाती है।
